गजल :- झूठ को सच हमेशा बताना पड़ा फ़र्ज़ यूँ भी बशर का निभाना पड़ा - - - बलजीत सिंह बेनाम

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आपकी बज़्म में लौटने के लिए


हर क़दम क़ीमतों को बढ़ाना पड़ा


 


ज़िंदगी के सभी सुर समझ आ गए


प्यार के राग को भूल जाना पड़ा


 


इक सुहागन को जीवन ही सारा अगर


एक विधवा के जैसे बिताना पड़ा


 


बेसबब गर्व का खामियाज़ा यही


सर झुकाया नहीं सर कटाना पड़ा


 


        शायर - बलजीत सिंह बेनाम


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