पटाखों से नहीं किया परहेज तो शहर का गैस चैंबर बनना तय
पीलीभीत
शहर में प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है। ऐसे में शहरवासियों को इस दीपावली काफी सावधानी बरतने की जरूरत है। विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले साल की तरह करोड़ों रुपये की आतिशबाजी का इस्तेमाल किया गया तो शहर का गैस चैंबर बनना तय है।
दिवाली खुशियां मनाने का त्योहार है, मगर पटाखों के तेज धमाकों के बीच इस त्योहार का अर्थ ही खोता जा रहा है। बुजुर्ग बताते है कि पहले दिवाली पर लोगों का ध्यान पूजन और घर को दीयों से रोशन करने पर होता था, मगर बदलते वक्त में अब लोगों का ध्यान दिवाली पर धूम धड़ाका करने पर ही रहता है। शहर में पटाखों की दुकानें सजने वाली हैं। इन दुकानों पर आतिशबाजी के शौकीनों की बस एक ही मांग रहती है कि कौन सा पटाखा ज्यादा देर तक रोशनी और धमाका करेगा। मगर शहर में बढ़ते प्रदूषण के स्तर को देखते हुए अब लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक होने की जरूरत है।
विपनेट क्लब के जिला समन्वयक लक्ष्मीकांत शर्मा बताते हैं कि पिछले सप्ताह भर में शहर का वायु गुणवत्ता सूचकांक 141 से 159 पर पहुंच चुका है। पिछले साल पटाखों के दुष्परिणाम लोग झेल चुके हैं। 20 से अधिक दिनों तक हवा जहरीली होने के साथ वातावरण में धुंध छाई रहती थी। यदि इस बार 13 और 14 नवंबर की रात पिछले साल की तरह पटाखों का इस्तेमाल किया गया तो तराई का यह शहर गैस चैंबर भी बन सकता है। सांस संबंधी बीमारी से लेकर फेफड़ों में संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है। खासकर बुजुर्गों के लिए तेज धमाके की आवाज उनकी जान के लिए खतरा बन सकती है। ऐसे में लोगों से अपील है कि वह पटाखों से परहेज करें और प्रदूषण रहित दिवाली मनाने का संकल्प लें।
दिवाली वैसे भी दीपों के त्योहार के नाम से जाना जाता है। पटाखों से दुर्घटनाएं होती है और प्रदूषण भी बढ़ रहा है। घर के बड़ों को कर्तव्य होना चाहिए कि परिवार के सदस्यों को पटाखों के इस्तेमाल से रोकें और प्रदूषण रहित दिवाली मनाएं। - विजय कुमार अग्रवाल, कारोबारी
पटाखों से होने वाले नुकसान के बारे में सभी जानते हैं, मगर लोग इसे अनदेखा कर रहे हैं। यह अनदेखी परिवारों को भारी पड़ सकती है। बड़े शहर प्रदूषण की चपेट में आ चुके हैं। प्रयास करें कि दिवाली पर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले पटाखों का इस्तेमाल न करें। - दीपक शर्मा, मेडिकल स्टोर संचालक
आजकल हम कोरोना से बचाव को मास्क का प्रयोग कर रहे हैं और अधिकांश लोग इससे ऊब भी चुके हैं। यदि यहां भी महानगरों के जैसे हालात हुए तो हमें यह मास्क हमेशा ही प्रयोग करना होगा। इससे छुटकारा पाना है कि इको फ्रेंडली दिवाली ही मनाएं। - नवनीश कुमार, कारोबारी
दिवाली पर वायु प्रदूषण हमेशा ही बढ़ जाता है। यहां धूल भी अधिक रहती है। सर्दियों में प्रदूषण अधिक खतरनाक हो जाता है। पटाखों में मौजूद विषैले रसायन सांस के जरिए शरीर में प्रवेश कर कई गंभीर बीमारियों को जन्म देते हैं। - डॉॅ. भरत कंचन, चिकित्सक