सीवर में मौत का सफर कब थमेगा
सफाई कर्मचारियों की लगातार मौत पर चन्दन लाल ने उठाए तीखे सवाल
लखीमपुर। देशभर में सीवर सफाई के दौरान सफाई कर्मचारियों की हो रही मौतें एक गंभीर राष्ट्रीय संकट का संकेत हैं, लेकिन इस पर सरकार और समाज की चुप्पी लगातार चिंता का कारण बन रही है। इसी विषय पर सामाजिक चिंतक चन्दन लाल ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए इस अमानवीय स्थिति पर सवाल उठाए हैं उन्होंने कहा कि आधुनिक सीवर प्रणाली के विस्तार के साथ ही सफाई कर्मियों की जान को खतरा भी बढ़ गया है। जबकि हड़प्पा जैसी प्राचीन सभ्यताओं में बेहतर और सुरक्षित सीवर व्यवस्था थी, आज की सीवर लाइनें जहरीली गैसों का जाल बन चुकी हैं 8 अप्रैल 2025 से अब तक देशभर में 26 सफाई कर्मियों की मौतें हो चुकी हैं, जिनमें सीतापुर, मथुरा-वृंदावन, फरीदाबाद, रोहतक, अहमदाबाद, अलवर, भटिंडा और जयपुर जैसे शहर शामिल हैं चन्दन लाल ने आरोप लगाया कि सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार के स्पष्ट दिशा-निर्देशों के बावजूद सीवर में बिना सुरक्षा के सफाई कराई जाती है। हादसे होने पर अधिकारी यह कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं कि मृतक 'ठेके पर कार्यरत' थाउन्होंने बताया कि 1993 से मैला ढोने की प्रथा पर कानूनन रोक है, बावजूद इसके 1248 मौतें अब तक दर्ज की जा चुकी हैं। सबसे ज्यादा मौतें तमिलनाडु (253), गुजरात (183), उत्तर प्रदेश (133) और दिल्ली (116) में हुईं2013 के अधिनियम में सीवर में प्रवेश से पहले 27 दिशा-निर्देशों का पालन अनिवार्य है, लेकिन ये केवल कागज़ों तक सीमित हैं। केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने भी राज्यसभा में स्वीकार किया कि पिछले पांच वर्षों में 419 मौतें हुई हैं।कानून हैं, पर अमल नहीं 1993 से मैला ढोने पर प्रतिबंध2013 अधिनियम में 27 दिशा-निर्देश अनिवार्य उल्लंघन पर 2 साल की सजा या ₹1 लाख जुर्माना फिर भी अधिकारियों पर कार्रवाई नगण्यमौत की वजह: हाईड्रोजन सल्फाइड व मीथेन गैसचांद तक पहुंचा विज्ञान, पर सीवर सफाई अब भी जानलेवाचन्दन लाल ने कहा कि सफाई कर्मियों की मौत केवल एक आंकड़ा नहीं, बल्कि यह राष्ट्रीय शर्म का विषय है। सरकार, प्रशासन और समाज को मिलकर इस पर ठोस समाधान निकालना चाहिए