शांति पूर्ण ढंग से मनाया गया ईद ऊल अजहा का त्योहार ।
ईद-उल-अज़हा की नींव उस महान कथा पर आधारित है जिसमें पैग़म्बर हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम ने अपने बेटे इस्माईल अलैहि सलाम को अल्लाह के हुक्म पर कुर्बान करने का संकल्प लिया था। यह परीक्षा उनके विश्वास और समर्पण की थी।
जब हज़रत इब्राहीम अपने बेटे को कुर्बान करने ही वाले थे, तभी अल्लाह ने उनकी निष्ठा को देखकर इस्माईल की जगह एक दुम्बा (भेड़) भेज दिया और कहा कि:
> "तुमने अपनी कुर्बानी को सच्चा कर दिखाया।"
(क़ुरआन, सूरह अस-साफ्फात 37:105)
इस घटना की याद में हर साल मुसलमान कुर्बानी करते हैं।
ईद-उल-अज़हा न केवल त्याग का प्रतीक है, बल्कि यह दिन दुआओं और भाईचारे का भी प्रतीक होता है। इस अवसर पर लोग अल्लाह से शांति, सद्भाव और समाज की तरक्की के लिए प्रार्थना करते हैं:
> "ऐ अल्लाह! हमें अमन, भाईचारे और इंसाफ के रास्ते पर चलने की तौफ़ीक़ अता फ़रमा। हमारे देश में शांति और समृद्धि बनाए रख। सबके दिलों में मोहब्बत और एकता पैदा कर। आमीन।"
मस्जिदों में विशेष नमाज़ अदा की जाती है।
जरूरतमंदों को कुर्बानी का मांस बांटा जाता है।
लोग आपसी मतभेद भूलाकर गले मिलते हैं और एक-दूसरे को "ईद मुबारक" कहते हैं।
इस दिन साफ-सफाई, नियमों और सार्वजनिक शांति का विशेष ध्यान रखा जाता है।
ईद-उल-अज़हा एक ऐसा त्यौहार है जो हमें सिखाता है कि सच्चा विश्वास केवल बातों में नहीं, बल्कि कर्मों और बलिदान में झलकता है। यह पर्व शांति, सेवा और समर्पण का प्रतीक है। एक ऐसा अवसर जहाँ दुआओं में न केवल अपना भला माँगा जाता है, बल्कि पूरी मानवता की तरक्की और अमन के लिए दुआ की जाती है।