कैसे भूलेंगे वो मैदान रसूले अरबी!बज़्म फ़रोगे अदब द्वारा मुशायरे का आयोजन, शायरों ने इमाम हुसैन को किया नमन
लखीमपुर खीरी से संवाददाता अब्दुल क्वी की रिपोर्ट
लखीमपुर खीरी। मोहर्रम के पाक मौके पर बज़्म फ़रोगे अदब की ओर से एक शानदार मुशायरे का आयोजन किया गया, जिसमें शायरों ने इमाम हुसैन की शहादत और करबला की यादों को अशआर के ज़रिए श्रद्धांजलि दी यह आयोजन खीरी कस्बे के मोहल्ला शेखसराय स्थित मदरसा सुल्ताने हिंद में हुआ। मुशायरे की सदारत बज़्म के सदर आमिर रज़ा पम्मी ने की और निज़ामत की ज़िम्मेदारी इलियास चिश्ती ने निभाई। अपने अध्यक्षीय संबोधन में आमिर रज़ा ने कहा कि "आज की यह महफ़िल इमाम हुसैन के नाम पर हमारी बज़्म के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि है।डॉo एहराज अरमान: "सर कटाया है जहां दीन के शहजादों ने, कैसे भूलेंगे वह मैदान रसूले अरबी शहबाज़ हैरत चिश्ती: "हर इक नमाज़ी होता नहीं राहे रास्त पर, देखे हैं करबला में मुसल्ले अलग अलग इलियास चिश्ती जानते हो कितने भीतर हैं हुसैन जिस्म में दिल, दिल के अंदर हैं हुसैन उमर हनीफ सब्रो रज़ा से महके हुए लफ़्ज़ दे खुदा, लिखना है मुझको एक कसीदा हुसैन का नफ़ीस वारसी उन्हीं की वज्ह से रौनक़ है इसके साहिल पर, फ़ुरात क्यों न पुकारे हुसैन ज़िन्दा बाद अंसारी रौनक़ उन्हीं के चहरे पे होगी बरोज़े हश्र, अय्यूब जिनको प्यार है मेरे हुसैन से मंसूर महवार ख़ुतब ए जैनब ने साबित कर दिया, हक पे बातिल का चला सिक्का नहीं मोoआसिफ नूर सलीस मीठी ज़बां को हुसैन कहते हैं, सदाक़तों के बयां को हुसैन कहते हैं हसन अंसारी यजीद मुर्दा है मुर्दों में पाया जाता है, हुसैन जिंदा हमारे हुसैन जिंदा बाद कार्यक्रम में क्षेत्र के तमाम अदब पसंद और शायरी प्रेमियों की बड़ी संख्या में मौजूदगी रही